________________
mer
.
.
.
.
.
(
२४३. )
भव करने लगे। ___कदाचित् राजा चंडप्रद्योतन रानी' वमुकांताके साथ एकांतमें बैठे थे । अचानक ही उन्हें भूमितिलकपुरके युद्धका म्मरण होगया । वं रानी वसुकांतासे कहने लगे।
प्रिये ! .मैं अतिशय प्रतापी था । चतुरंग सेनासे मंडित था अपने प्रतापसे मैंने समस्त भूपतियोंका मान गलन करदिया था। मैंने तेरे पिताको इतना बलवान नहीं जाना था । हाय तेरे पिताके साथ युद्धकर मैंने बड़ा अनर्थ किया । रानी वनुकांताने जब ये वचन सुने तो वह कहने लगी--
नाथ ! आपके बराबर मेरे पिता बलवान न थे । किं तु मुनिवर जिनपालने उन्हें अभयदान दे दिया था इसलिये वे आपसे पराजित न हो सके । रानी वमुकांताके ये वचन सुन तो महाराज अचंभेमें पड़ गये। वे कहने लगे-- ___चंद्रवदने ! तुम यह क्या कह रही हो । परमयोगी राग द्वेषसे रहित होते हैं । वे कदापि ऐसा काम नहिं कर सकते । यदि मुनिवर जिनपालने राजा वमुपालको ऐसा अभयदान दिया हो तो बड़ा अनर्थ कर पाड़ा। चलो अब हम शीघ्र उन्हीं मुनिराजके पास चलें और उन्हींसे सब समाचार पूंछे--
राजा चंडद्योतनकी आज्ञानुसार रानी वसुकांता चलने कलिये तयार होगई, वे दोनों दंपती बड़े : आनंदसे मनिवंद | नार्थ गये । जिससमय वे दोनों दंपती वनमें पहुंचे । और |
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com