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( २४२ ) पहुंच उन्होंने विनयसे राजाको नमस्कार किया और जो कुछ राजा वसुपालका संदेशा था सब कह सुनाया । मंत्रिओंके मुखसे राजा बसुपालका यह संदेशा सुन राजा चंडप्रद्योतनने कहा-- ___मंत्रिओ ! राजा चंडप्रद्योतन अतिशय धर्मात्मा है । धर्म उसे अपने प्राणोंसे भी प्यास है । मैंने राजा वसुपालको जैन समझ युद्धका संकल्प छोड़ दिया । जो पापी पुरुष जैनियों के प्राणोंको दुःखाते हैं। उनके साथ युद्ध करते हैं । वे शीघ्र मृत्यु को प्राप्त होते हैं । और वे संसारमें नराधम कहलाते हैं। ..
राजा : चंडप्रद्योतनसे , यह समाचार सुन मंत्री तत्काल भूमितिलकपुरको लोट पड़े । चंडप्रद्योतनका सारा समाचार राजा : वसुपालको कह सुनाया और उनकी अनेकप्रकारस प्रशंसा • करने लगे । ज्योंही राजा वसुपालने यह बात सुनी उन्हें अति प्रसन्नता। हुई। चंडप्रद्योतनको। अपना : समान धर्मी समझ राजा वसुपालने शीघ्र ही कन्या वसुकांताका राजा चंडप्रद्योतनके साथ विवाह कर दिया । एवं हाथी घोड़ा आदि। उत्तमोत्तम पदार्थ देकर राजा चंढप्रद्योतनके साथ बहुत ।। कुछ हित जनाया ।
जब कन्या. वसुकांताके साथ राजा चंउप्रद्योतनका विवाह होगया तो . उनको बड़ा संतोष हुवा । वे बड़े आनंदसे रहने .लगे । और दोनों दंपती . भलेप्रकार , सांसारिकसुखका . अनु- 1
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