________________
( २४१ ) राजन् वसुपाल ! तुझे किसीप्रकारका भय नहीं करना चाहिये नियमसे तेरी विजय होगी। बस फिर क्या था ? देवी तो उससमय अदृश्य थी इसलिये ज्यों ही राजा वसुपालने ये वचन सुने मारे आनंदके उसका शरीर रोमांचित होगया । वह यह समझ कि यह आशार्वाद मुझे मुनिराजने दिया है बड़ी भक्तिसे उसने मुझे नमस्कार किया । और बड़ी विभूतिके साथ अपने राजमंदिरकी ओर चला गया-राजमंदिरम जाकर विजयकी खुशीमें उसने तोरण आदि लगाकर नगरमें बड़ा भारी उत्सव किया । समस्त दिशा बधिर करनेवाले बाजे वजने लगे । एवं राजा वसुपाल आनंदसे रहने लगा ।
राजा चंडप्रद्योतनको भी इसबातका पता लगा । राजा वसुपालको पक्का जैनी समझ उसने तत्काल युद्धका संकल्प छोड़ दिया। और सब सेनाको साथ ले अपने नगरकी ओर प्रस्थान करदिया। नगरमें जाकर उसने जैनधर्म धारण कर लिया । जिनराजके वाक्यों पर उसका पूरा पूरा श्रद्धान होगया और आनंदसे रहने लगा।
राजा वसुपालको भी चंडप्रद्योतनके चले जानेका पता लगा। उसने शीघ्र ही कई मंत्री जो कि परके अभिप्राय जाननेमें अतिशय चतुर थे शीघ्र ही राजा चंडप्रद्योतनके पास भेजे
और सारा हाल जानना चाहा । राजाकी आज्ञानुसार समस्त मंत्री शीघ्र ही कौशांबी गये । राजा चंडप्रद्योतनकी सभामें
१६
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
dial
www.umaragyanbhandar.com