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कदाचित् राजा मित्रका शरीरांत होजानेसे सुमित्र राजा बनगया। सुमित्रको राजा जान मंत्रिपुत्र मुषेणको अति चिंता हो गई। वह विचारनेलगा-सुमित्रकी प्रकृति क्रूर है। यह दुष्ट मुझे बालकपनमें बड़े कष्ट देता था। अब तो यह राजा हो गया, मुझे अब यह और भी अधिक कष्ट देगा । इसलिये अव सबसे अच्छा यही होगा कि इसके राज्यमें न रहना। तथा ऐसा विचार कर सुषेणने शीघ्र ही कुटुंबसे मोह तोडादिया। एवं बनमें जाकर जैनदीक्षा धारण कर वे उग्रतप करनेलगे। ____ जबसे सुषेण मुनिराज बनमें गये तबसे वे राजमंदिरमें न आये । राजा सुमित्र भी राजपाकर आनंदसे भोग भोगने लगे। उनको भी सुषेणकी कुछ याद न आई । कदाचित् राजा सुमित्र एकांत स्थानमें बैठे थे। उन्हें अचानक ही सुषेणकी याद आगई। सुषेणका स्मरण होते ही उन्होंने चट किसी पार्श्वचर (सिपाही)से घर पूछा कहो भाई ! आजकल मेरे परमपवित्र मित्र सुषेण राज मंदिरमें नहीं आते। वे कहां रहते है ? और क्यों नहीं आते । महाराजके मुखसे सुषेणके वावत ये वचन सुन पार्श्वचरने कहा. कृपानाथ ! सुषेण तो दिगंबर दीक्षाधारण कर मुनि हो गये। अब उन्होंने समस्त संसारसे मोह छोड़दिया। वे आजकल बनमें रहते हैं । इसलिये आपके मंदिरमें नहीं आते । पार्श्वचरके मुखसे अपने प्रियमित्र सुषेणका यह समाचार सुन राजा सुमित्र | बड़े दुःखी हुए । उन्हें सुषेणकी अब बड़ी याद आने लगी।
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