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( २२८ ) हैं । किंतु यह बात कहीं नहीं देखी कि स्त्रीके कहनेसे वे विपरीत मार्गगामी हो जांयआप विश्वास रखिये जो मनुष्य स्त्रीकी बातोंमें आकर अपने समीचीन मार्गका त्याग करदेते हैं । और विपरीत मार्गको ही सम्यक मार्ग समझन लग जात हैं। वे मनुष्य विद्वानोंकी दृष्टिमें चतुर नहीं समझे जाते । स्त्रीके कहने में चलने वाला मनुष्य आ वालगोपाल निंदा भाजन वन जाता है । राजन् ! आप बुद्धिमान हैं। प्रत्येक कार्य विचार पूर्वक करते हैं । तथापि न मालूम आपने कैसे स्त्री की वातोमें फसकर अपने पवित्र धर्मका परित्याग कर दिया ? हमैं इस बातकी कोई परवा नहीं कि आपजैन वनैं अथवा बौद्ध हैं । किं तु यहां यह कहना हमै आवश्यकीय होगा कि यदि आप जैन मुनिओंकी अपेक्षा बौद्ध साधुओंको अल्पज्ञानी समझते हैं, तो आप कृपया फिरसे इस बातका निर्णय कर लें। पीछे आप बौद्ध धर्मका परित्याग कर दें । मगधाधिप ! हमें पूर्ण विश्वास है कि अनेकप्रकारके ज्ञान विज्ञानके भंडार, परम पवित्र, बौद्ध साधुओंके सामन जैन धर्मसेवी मुनी कोई चीज नहीं। और न बौद्धधर्मके सामने जैन धर्म ही कोई चीज है। याद रखिये यदि आप योंही विना परिक्षा किये जैन धर्म धारण कर लेंगे । और बौद्ध धर्म छोड देंगे तो आपको अभी नहीं तो पीछे जरूर पछिताना होगा। प्रबल पवनके सामने अचलभी वृक्ष कहांतक चलायमान नहीं
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