________________
( २३६ ) भगवन्! आज आप आहारार्थ मेरे मंदिर में गये थे । आपने मेरे मंदिर में क्यों आहार न लिया ? मुझसे ऐसा क्या घोर अपराध बन पड़ा था ? कृपाकर मेरे इस संदेहको शीघ्र दूर करें । राजा श्रेणिकके ऐसे वचन सुन मुनिराज जिनपालने भी वही उत्तर दिया जो मुनिवरधर्मघोष ने दिया था ।
मुनिराज से यह उत्तर पाकर महाराज फिर अचंभे में पड गये । मनमें वे ऐसा सोचने लगे कि इन मुनिराज के कोनसी गुप्ति नहीं है । और वह क्यों नहीं है ? तथा कुछ समय ऐसा संकल्प विकल्प कर उन्होंने मुनिराज से पूछा
प्रभो । कृपया इसबातको खुलासारीति से कहैं । आपके कौंनसी गुप्ति न थी । और क्यों न थी ? मेरे मनमें अधिक संशय है । मुनिराजने उत्तरदिया ---
राजन् ! मेरे वचन गुप्तिं न थी । वह क्यों न थी उसका कारण सुनाता हूं ध्यानपूर्वक सुनो
इसी पृथ्वीमंडलपर समस्त पृथ्वीका तिलकभूत एक भूमितिलक नामका नगर है । नगर भूमितिलका अधिपति भलेप्रकार प्रजाका रक्षक, अतिशय धर्मात्मा राजा बसुपाल था । वसुपालकी प्रिय भार्या धारिणी थी । रानी धारिणी अतिमनोहरा, उत्तमोत्तम गुणोंकी आकर एवं कामदेवकी जयपताका थी । शुभ भाग्योदयसे रानी धारिणीसे उत्पन्न एक कन्या थी । जो कन्या चंद्रवदना गृगनयना रतिरूपा समस्त उत्तमोत्तम
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com