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( २२६ ) क्षमा भी इनकी प्रशंसाके लायक है। परीषहोंके जीतनेमें धीरता भी इनकी लोकोत्तर है । इनके प्रत्येक गुण पर विचार करनेसे यही बात जान पडती है कि मुान यशोधरसा परम ध्यानी परम ज्ञानी मुनि शायद ही संसारमें होगा ? श्री जिनेंद्र भगवानका शासन भी संसारमें धन्य है। जिनागममें जो तत्त्व कहे गये हैं। और उनका जिसरीतिसे स्वरूप वर्णन किया गया है सर्वथा सत्य है । जिनोक्त जीवादितत्त्वोंसे भिन्न तत्त्व मिथ्या तत्त्व हैं। यशोधर मुनिराज अपने व्रतमें सर्वथा दृढ हैं। साधुओंके वास्तविक लक्षण मुनि यशोधरमें ही संघटित होते हैं। एवं महाराजकी विचार सीमा अब और भी चढ गई वे मनही मन यह भी कहने लगे—जो साधु भोले जीवोंके वंचक हैं । विषय लंपटी हैं। हाथी घोडा माल खजाना स्त्री आदि पारग्रहोंके धारक हैं। वास्तविक ज्ञान ध्यानसे बहिर्भूत हैं। वे नामके ही साध हैं। पाखंडी साधु कदापि गुरु नहीं बन सकते । वे संसार समुद्रमें डुबाने वाले हैं। इसप्रकार विचार करते करते महाराज श्रोणकको अपनी आत्माका कुछ वास्तविक ज्ञान हो गया। उन्होंने शीघ्र ही श्रावकके व्रत धारण करलिये । रानी चेलना सहित महाराज श्रेणिकने विनयसे मुनिराजके चरणोंको नमस्कार किया । एवं मुनिराजके गुणोंमें संलग्नचित्त, उनकी वारंवार स्तुति करते हुवे महाराज श्रेणिक और रानी चेलना आनंद पूर्वक
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