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( २२५ ) एकदम जमीनपर गिरगये। तत्काल उनके प्राण पखेरु उडभगे। एवं खोटे निदानस मुनि सुषण व्यंतर होगये।
मुनि सुषेणकी मृत्युका समाचार राजा सुमित्रने भी मुना । सुनते ही उनका चित्त अति आहत होगया । सुमित्रको आदि ले मंत्री आदि सुषेणकी मृत्यु पर अति शोक करने लगे। किसीदिन सुषेणकी मृत्युसे सुमित्रके दुःखकी सीमा यहां तक बढ़ गई कि उसने समस्त राज्यका परित्याग कर दिया । शीघ्र ही तापसके व्रत धारण कर लिये । आर आयुके अंतमें मर कर खोटे तपके प्रभावसे वह भी देव हो गया।
मगधेश ! अब देवगतिकी आयुको समाप्त कर राजा सुमित्रका जीव तो तो श्रोणक हुवा है। ओर मुनि सुषेणका जवि अपने आयुकर्मके अंतमें रानी चेलनाके गर्भमें आवेगा । वह कुणक नाम का धारक तेरा पुत्र होगा । एवं तेरा पुत्र होकर भी वह तेरोलिये सदा शत्रु ही रहेगा।
मुनिराज यशोधरके मुखसे अपने पूर्वभवका यह वृत्तांत सुन राजा श्रेणिकको शीघ्र ही जातिम्मरण हो गया । जातिस्मरणके वलसे उन्होंने शीघ्र ही अपने पूर्वभवका हाल वास्तविक रीतिसे जान लिया। एवं मुनिराजके गुणोंकी मुक्त कंठसे . प्रशंसा करते हुवे वे ऐसा विचार करने लगे-- ___ अहा ! ! ! मुनि यशोधरका ज्ञान धन्य है। उत्तम
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