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( २० ) ___ कदाचित् राजा सुमित्रको यह पता लगा कि मुनिराज सुषेण सू'पुर के उद्यानमें आ विराने हैं । उन्हें बड़ी खुशी हुई। मुमिराजके आगमन श्रवणसे राजा सुभित्रका चित्तरूरी कमल विकसित होगया। उन्होंने मुनिराजके दर्शनार्थ शीघ्र ही नगर में दिढोडा पिटवा दिया । एवं स्वयं भी एक उन्नत गजपर मवार हो बडे ठाट वाटसे मुनि दर्शनकेलिये गये। ज्योंही राजा सभित्रका हाथी बनमें पहुंचा । वे गजसे चट उतर पडे । मुनिराज सुषेणके पास जाकर उनकी तीन प्रदक्षिणा दी। अति विनयसे नमस्कार किया। एवं प्रवल मोहके उदयसे सुषेणकी मुनिमुद्राकी ओर कुछ न विचार कर वे यह कहने लगे।
प्रियमित्र ! मेरा राज्य विशाल राज्य है। शुभकर्मक उदयसे मुझे वह मिल गया है। ऐसे विशाल राज्यकी कुछ भी परवा न कर मेरे बिना पूछे आप मुनि बनगये यह ठीक न किया । आपको आधा राज्य ले भोग भोगने थे। अब भी आप इस पदका परित्याग करदें । भला संसारमें ऐसा कौंन बुद्धिमान होगा ? जो शुभ एवं प्रत्यक्ष मुख देनेवाले राज्यको छोड दुधर तफ. आचरण करैगा । राजा सुमित्रके मुखसे ये मोहपूर्ण वचन सुन मुनिराज सुषेणने कहा
राजन् ! मैं अपनी आत्माको शांतिमय अवस्थामें लाना चाहता हूं। परभवमें मेरी आत्मा शांतिस्वरूपका अनुभव करै इसलिये मैंने यह तप करना प्रारंभ करदिया है । मुझे विश्वास है
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