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अब विशेष कहनकी आवश्यकता नहीं। अब एक काम करो जहांपर मुनिराज विराजमान हैं वहां पर हम दोनों शीघ्र चलें ।
और उन्हें जाकर देखें। ___रानी तो जानेको तयार ही थी उसने उसीसमय चलना स्वीकार किया । एवं इधर रानी तो अपनी तयारी करने लगी। उधर महाराजने मुनिदर्शनार्थ शीघ्र ही नगरमें डोंडी पिटवादी तथा जिससमय रानी पीनसमें बैठि बनकी ओर चलने लगी महाराजभी एक विशाल सेनाके साथ उसके पीछे घोडे पर सवार हो चलदिये । और रातही रातमें अनेक हाथी घोडों से वेष्टित वे दोनों दंपती पल स्यायतमें मुनिराजके पास जा दाखिल होगये।
यह नियम है मुनियोंपर जब उपसर्ग आता है। तव वे अनित्य आदि बारह भवनाओंका चिंतन करने लगजाते हैं। ज्योंही मुनि यशोधरके गलेमें सर्प पड़ा वे इसप्रकार भावना मा निकलेराजाने जो मेरे गलमें सर्प डाला है सो मेरा बडा उपकार किया है। क्योंकि जो मुनि अपनी आत्मासे समस्तकमीका नाशकरना चाहते हैं उन्हें चाहिये कि वे अवश्य कर्मोंकी उदीरणाके लिये परीषह सहैं । यह राजा मेरा बडा उपकारी है । इसने अपने आप परीषहोंकी सामिग्री मेरेलिये एकत्रित करदी है । यह देह मुझसे सर्वथा भिन्न है। कर्मसे उत्पन्न हुवा है । और मेरी आत्मा समस्त स्मोंसे रहित पवित्र है।
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