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विनीत मगधेश ! संसारमें यदि जीवोंका परम मित्र है तो धर्म ही है । इस धर्मकी कृपासे जीवोंको अनेक प्रकारके ऐश्वर्य मिलते हैं । उत्तम कुलमें जन्म मिलता है । और संसारका नाश भी धर्मकी ही कृपासे होता है । इसलिये उत्तम पुरुषोंको चाहिए कि वे सदा उत्तम धर्मकी आराधना करें ।
देखो भाग्यका माहात्म्य कहां तो परम पवित्र मुनि यशोधर का दर्शन ? और बौद्धधर्मका परमभक्त कहां मगधेश राजा श्रेणिक ? तथा कहां तो रानी चेलना द्वारा बौद्धधर्मकी परीक्षा । ओर कहां महाराज श्रेणिकका परीक्षासे क्रोध ! कहां तो श्रेणिकका मुनिराजके गले में सर्प गिराना ? और कहां फिर रानी द्वारा उपदेश ? एवं कहां तो रात्रिमें राजा रानीका गमन ? और कहां समान रीतिसे धर्मवृद्धिका मिलना ? ये सब बातें उन दोनों दंपतीको शुभ अशुभ भाग्योदय से प्राप्त हुई ।
मुनि यशोधरने जो धर्म वृद्धि दी थी वह साधारण न भी किं तु स्वर्ग मोक्ष आदि सुख प्रदान करने वाली थी । संसारसे पार करनेवाली थी । तीर्थकर चक्रवर्ती इंद्र अहमिंद्र आदि पदोंकी दात्री थी । एवं ' महाराज आगे तीर्थंकर होंगे, इस वातको प्रकट करनेवाली थी । और धर्मसे विमुख महाराजको धर्म मार्गपर लानेवाली थी ।
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