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( २१० ) नहीं बनते हैं ! जिससमय राजारानीने मुनिको ज्योंका त्यों देखा मारे आंनदके उनका शरीर रोमांचित होगया । उन दोनोंने शीघ्र ही समानभावसे मुनिराजको नमस्कार किया। एवं उनकी प्रदक्षिणा की। मुनिके दुःखसे दुःखित, किंतु उनके ध्यानकी अचलतासे हर्षितचित्त, एवं प्रशम संवेग आदि सम्यक्त्व गुणोंसे भूषित, रानी चेलनाने शीघ्र ही मुनिके गलेसे सर्प निकाला । पासमें कुछ चीनी फैलाकर शीघ्र ही चिउंटी दूर की। चिऊंटिओंने मुनिराजका शरीर खोखला कर दिया था इसलिये रानी ने एक मुलायम वस्त्रस अवशिष्ट कीडिओंको भी दूरकर उसै गरम पानीसे धोया। ओर संतापकी निवृत्ति के लिए उसपर शीतल चंदन आदिका लेप कर दिया। एवं मुनिराजको भक्ति पूर्वक नमस्कार कर मुनिराजकी ध्यान मुद्रापर आश्चर्य करनेवाले,उनके दर्शनसे अतिशय संतुष्ट, वे दोनों दंपती आनंद पूर्वक उनके सामने भूनिमें बैठिगये। ___ यह नियम है दिगंबर साधु रातमें नहीं बोलते इसलिये जबतक रात्रि रही मुनिराजने किसीप्रकार वचनालाप न किया । किं तु ज्यों ही दिनका उदय हुवा । आर अंधकारको तितर वितर करते हुवे ज्योंहीं सूर्य महाराज प्राची दिशा में
आ जमे। रानीने शीघ्र ही मुनिराजके चरणोंका प्रक्षालन किया । एवं परमज्ञानी, परमध्यानी, जर्जर शरीरके धारक, मुनिराजकी फिरसे तीन प्रदक्षिणा दी। और उनके चरणोंकी भक्तिभावसे
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