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( २०३ ) अहा ! रानीसे वरके वदला लेनेका आज सवसर मिला है । रानीने मेरे गुरुओंका बडा अपमान किया है । उन्हें अनेक कष्ट पहुंचाये हैं। मुझे आज यह रानीका गुरु भी मिला है । अव मुझे भी इसे कष्ट पहुंचानेमें और इसका अपमान करनेमें चूकना नहीं चाहिये । तथा ऐसा क्षण एक विचार कर महाराजने शीघ्र ही पांचसो शिकारी कुत्ते, जो लंबी लंबी डाडोंके धारक, सिंह के समान उंचे, एवं भयंकर थे। मुनिराज पर छोडदिये।
मुनिराज परमध्यानी थे। उन्हें अपने ध्यानके सामने इस बातका जरा भी विचार न था कि कोंन दुष्ट हमारे ऊपर क्या अपकार कर रहा है ? इसलिये ज्योंही कुत्ते मुनिराजके पास गये। ओर ज्योंही उन्होंने मुनिराज की शांतमुद्रा देखी, सारी करता उनकी एक ओर किनारा कर गई । मंत्रकौलित सर्प जैसा शांत पडजाता है मंत्रके सामने उसकी कुछ भी तीन पांच नही चलती उसीप्रकार कुत्ते भी शांत होगये । मुनिराज की शांत मुद्राके सामने उनकी कुछ भी तीन पांच न चली । बे मुनिराज की प्रदक्षिणा देने लगे। और उनके चरण कमलों में बठि गये।
महाराजभी दूरसे यह दृश्य देख रहे थे । ज्योंही उन्होंने कुत्तोंको कोधरहित और प्रदक्षिणा करते हुवे देखा-मारे क्रोधके उनका शरीर पजलगया | वे सोचने लगे यह साधु नहीं है धूर्त वंचक कोई मंत्रवादी है। मेरे वलवान कुत्ते इस दुष्टने मंत्रसे
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