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सदा शुभयोगकी ओर झुकी रहती थी । अशुभ योग उनके पासतक भी नहीं फटकने पाता था । उनका मन सर्वथा वश था। मित्र शत्रओंपर उनकी दृष्टि बरावर थी । कालिक योगके धारक थे । समस्त मुनिओंमें उत्तम थे। अनंत अक्षय गुणोंके भंडार थे । असंख्याती पर्यायोंके युगपत् जानकार थे। देदीप्यमान निर्मल ज्ञानसे शोभित थे। भव्यजीवोंके उद्धारक
और उन्हें उत्तम उपदेशके दाता थे। स्यादस्ति स्यान्नास्ति इत्यादि अनेक धर्मस्वरूप जीवादि सप्त तत्त्व उनके ज्ञानमें सदा प्रतिभासित रहते थे । एवं बड़े बड़े देव आर इंद्र आकर उनके चरणोंको नमस्कार करते थे ! महाराजकी दृष्टि मुनि यशोधर पर पडी । उन्होंने पहिले किमी दिगंबर मुनिको नहीं देखा था इसलिये शीघ्र ही उन्होंने किसी पार्श्वचरसे धर पूछा।
देखो भाई ! नग्न, स्नानादि संस्काररहित, एवं मूडमूड़ाये यह कोंन खडा है। मुझे शीघ्र कहो। पार्श्वचर बौद्ध था उसने शीघ्र ही इन शब्दोंमे महाराजके प्रश्नका जबाव दिया।
कृपानाथ ! क्या आप नहीं जानते ? शरीरनराये खडा हुवा, महाभिमानी यही तो रानी चेलनाका गरू है। ____ वस वहां कहने मात्रकी ही देरी थी। महाराज इस फिराकमें बैठे ही थे कि कव रानीका गुरु मिले और कव उसका अपमान कर मैं रानीसे वदला लूं! ज्योंही महाराजने पार्श्वचरके वचन सुने मारे क्रोधसे उनका शरीर उवल उठा । वे विचारने लगे
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