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लिये मनुष्याकार बन गया । उसीप्रकार हे दीनबंधो ! किसी ब्रह्मचारीसे मुझे यह बात मालूम हुई कि बौद्ध गुरुओं की आत्मा इस समय मोक्षमें है । ये इनके शरीर इससमय खोखले पडे हैं । मैंने यह जान कि बौद्धगुरुओं को अब शारीरिक वेदना न सहनी पडे, आग लगादी क्योंकि इसबात को आप भी जानते हैं । जब तक आत्माके साथ इस शरीरका संबंध रहता है। तब तक अनेक प्रकार के कष्ट उठाने पडते हैं । किं तु ज्योंहीं शरीरका संबंध छूटा त्योंहीं सब दुख भी एक ओर किनारा कर जाते हैं । फिर वे आत्मा से कदापि संबंध नहीं करने पाते । नाथ ! शरीर के सर्वथा जल जानेसे अब समस्त गुरू सिद्ध होगये । यदि उनका शरीर कायम रहता तो उनकी आत्मा सिद्धालय से लोट आतीं । और संसार में रहकर अनेक दुःख भोगतीं । क्योंकि संसारमें जो इंद्रियजम्य सुख भोगनेमें आते हैं उनका प्रधान कारण शरीर है । यह बात अनुभव सिद्ध है । कि ऐंद्रिक सुखसे अनेक कर्मो का उपार्जन होता है । और कर्मोंसे नरकादि गतिओंमें घूमना पड़ता है । जन्म मरण आदि वेदना भोगनी पडती हैं इसलिये मैंनें तो उन्हें सर्वथा दुःखस छुड़ाने के लिये ऐसा किया था, नरनाथ ! आप स्वयं विचार करें इसमें मैंने क्या जैन धर्मके विरुद्ध अपराध करपडा ? प्रभो ! आपको इसबातपर जराभी विषाद नहीं करना चाहिये । आप यह निश्चय समझें बौद्ध
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