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( १९२ ) उनके सारे होश किनारा करगय अव वे वारवार रानी की निंदा करने लगे। तथा रानी द्वारा किये हुवे पराभवसे लजित एवं नतमुख हो वे शीघ्र ही महाराजकी सभाम गये ।
और जो जो रानीने उनका अपमान किया था सारा महाराजको जा सुनाया । एवं राजमंदिरमें अति अनादरको पा, वे चुपचाप अपने अपने स्थानोंको चलेगये । रानीके सामने उनके ज्ञानकी कुछ भी तीन पांच न चली । ____कदाचित् राजगृह नगरमें एक विशाल वौद्धसाधुओंका संघ आया । संघके आगमनका समाचार एवं प्रशंसा महाराजके कानोंमें भी पड़ी। महाराज अति प्रसन्न हो शीघ्र ही रानी चेलनाके पासगये । और उन साधुओंकी प्रशंसा करने लगे
प्रिये ! मनोहरे : हमारे गुरु अतिशय ज्ञानी हैं । तपकी उत्कृष्ट सीमाको प्राप्त हैं । समस्त संसार उनके ज्ञानमें झलकता है ।
और परम पवित्र हैं । मनोहर ! जब कोई उनसे किसीप्रकारका प्रश्न करता है तो वे ध्यानमें अतिशय लीन होनेके कारण बड़ी कठिनतासे उसका जवाव देते हैं । ध्यानसे वे अपनी आत्माको साक्षात् मोक्षमें ले जाते हैं । एवं वे वास्तविकतत्वोंके उपदेशक हैं । और देदीप्यमान शरीरसे शोभित हैं । महाराजके मुखसे इस प्रकार बौद्धसाधुओंकी प्रशंसा सुन रानी चेलनाने विनयसे उत्तर दिया।
कृपानाथ ! यदि आपके गुरु ऐसे पवित्र एवं ध्यानी हैं
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