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( १९१ ) प्रार्थना करने लगे-कृपया आप हमारे जूते देदें। जिससे हम आनंदपूर्वक अपने अपने स्थान चले जाय । इसप्रकार बौद्ध गुरुओंकी जब प्रार्थना विशेष देखी तो रानीने जवाब दिया
बौद्धगुरुओ? आपकी चीज आपके ही पास है। और इस समय भी वह आपके ही पास है । आप विश्वास रक्खे
आपकी चीज किसी दूसरेके पास नहीं.-रानी चेलनाके ये बचन सुन तो बौद्ध गुरु बड़े विगड़े । वे कुपित हो इस प्रकार रानीसे कहने लगे----रानी यह तू क्या कहती है ? हमारी चीज हमारे पास है, भला वतातो वह चीज कहां है ? क्या हमने उसे चदाली ? तुझै हम साधुओंके साथ कदापि ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिये । गुरुओंके ऐसे वचन सुन रानीने जवाब दिया ___गुरुओ? आप घवाड़ायें न यदि आपकी चीज आपके पास होगी तो मैं अभी उसे निकाल कर देती हूं । रानीके इन बचनोंने बौद्धसाधुओंको बुद्धिहीन वनादिया । वे वार बार सोचने लगे यह रानी क्या कहती है ? यह बात क्या हो गई ? मालूम होता है इस निर्दय रानीने हमैं जूतोंका भांजन करादिया। तथा ऐसा विचार करते करते ऊ होने शीघ्र ही क्रोधसे बमन करदिया ___फिर क्या था ! जूतोंके टुकड़े तो उनके पेटमें अभी । | विराजमान ही थे ज्योंही वमनमें उन्होंने जूतों के टुकड़े देख
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