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( १९० ) शीघ्र ही उत्तरदिया गुरुओ ! आप तो इसवातकी डींग मारते थे कि हम सर्वज्ञ हैं। अब आपका वह सर्वज्ञपना कहां जाता रहा ? आप ही अपने ज्ञानसे जाने कि आपके जूते कहां है ? रानीके ऐसे वचन सुन बौद्धगुरु बड़े छके। उनके चेहरोंसे प्रसन्नता तो कोसो दूर किनारा करगई । अव रानीके सामने उनसे दूसरा तो कोई बहाना न बन सका । किं तु लाचारीसे यही जवाब देना पड़ा।
सुंदर ! हमलोगोंमें ऐसा ज्ञान नहीं कि हम इसवातको जानलें कि हमारे जूते कहां है । कृपाकर आपही हमारे जूते वतादीजिये । बौद्धगुरुओंके ऐसे वचन सुन रानी चेलनाका शरीर मारे क्रोधके भभक उठा। कुछसमय पहिले जो वह अपने पवित्र धर्मकी निंदा सुन चुकी थी। उस निंदाने उसै और भी क्रोधित बना दिया । बौद्धगुरुओंको विना जवाब दिये उससे नहीं रहा गया । वह कहनेलगी
बौद्धगुरुओ ! जब तुम जिनधर्मका स्वरूप ही नहीं जानते ते तुम्हें उसकी निंदा करनी सर्वथा अनुचित थी। विना समझे बालनेवाले मनुष्य पागल कहे जाते है । तुम लोग कदापि गुरुपदके योग्य नहीं हो । किंतु भोलेभाले प्राणियोंके वंचक असत्यवादी, माया चारी, एवं पापी हो। ____ रानाक सुखसे ऐसे कटुक बचन सुनकर भी बौद्ध गुरुओके मुखस कुछभी जवाव न निकला। वे मारामार उससे यही
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