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सा की । एवं जब वे बौद्धगुरु अपने अपने स्थानों पर बैठ गये । रानी चेलनाने नम्रतासे उनका पादप्रक्षालन किया । तथा उनके सामने उत्तमोत्तम सुवर्णमय थाल रखकर भाति भांतिके लाडू खीर श्रखिंड राजाओंके खाने योग्य भात, मूंगके लाडू इत्यादि स्वादिष्ट पदार्थों को परोस दिया । और भोजनकेलिये प्रार्थना भी करदी |
रानकी प्रार्थना सुनते ही गुरुओंने भोजन करना प्रारम्भ करदिया । कभी तो वे खीर खाने लने । और कभी उन्होंने लाहुओं पर हाथ जमाया । भोजनको उत्तम एवं स्वादिष्ट समझ वे मन ही मन अति प्रसन्न होने लगे। और बार बार रानीकी प्रशंसा करने लगे ।
जिस समय रानीने वौद्ध गुरुओंको भोजनमें अति मग्न देखा । शीघ्र ही उसने अपनी प्रिय दासी वुलाई । और यह आज्ञा दी । तू अभी राजमंदिरके दरवाजेपर जा, और गुरुओंके वायें पैरों के जूते लाकर शीघ्र उनके छोटे छोटे टुकड़े कर मुझे दे ।
रानीकी आज्ञा पाते ही दूती चलदी । उसने वहां से जूता लाकर और उनके महीन टुकड़े कर शीघ्र ही रानीको देदिये । तथा रानीने उन्हें शीघ्र ही किसी निकृष्ट छांछ में डाल दिया एवं उनमें खूब मसाला मिलाकर शीघ्र ही थोड़ा थोड़ा कर गुरुओंके सामने परोस दिया ।
जिससमय मधुर भोजनोंसे उनकी तवियति अकुलागई तब उन्होंने यह समझ कि यह कोई अद्भुत चटपटी चीज है ।
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