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उन दोनोंका आपसमें विवाह करदेना चाहिये जिससे हमारा और आपका स्नेह दिनोंदिन बढ़ता ही चलाजाय – सुभद्रदत्त के ये बचन सुन सागरदत्त ने कहा- जो आप कहते हैं सो मुझे मंजूर है । मैं आपके वचनोंसे बाहिर नहीं हूं ।
कुछदिन बाद सेठि सागरदत्त के भाग्यानुसार एक पुत्र जो कि सर्पकी आकृतिका धारक, एवं भयावह था उत्पन्न हुवा । और उसका नाम वसुमित्र रक्खा गया । तथा सेठि सुभद्रदत्तकी सेठानी सागरदत्तासे एक पुत्री उत्पन्न हुई जो पुत्री चंद्रवदना, मनोहरा सुवर्णवर्णा एवं अनेकगुणोंकी आकर थी । और उसका नाम नागदता रक्खा गया । कदाचित् कुमार कुमारीने यौवन अवस्था में पदार्पण किया । इन्हें सर्वथा विवाहके योग्य जान बड़े समारोहसे दोनोंका विवाह किया गया । एवं विवाह के बाद वे दोनों दंपती संसारिक सुखका अनुभव करने लगे ।
माताका पुत्री पर अधिक प्रेम रहता है । यदि पुत्री किसी कष्टमय अवस्था में हो तो माता अति दुःख मानती है । कदाचित् पुत्री नागदत्तापर सागरदत्ता की दृष्टि पड़ी। उसे हार आदि उत्तमोत्तम भूषणोंसे भूषित, कमलाक्षी, कनकवर्णा देख वह इस प्रकार मन ही मन रोदन करने लगी ।
पुत्री ! कहां तो तेरा मनोहर रूप, सौभाग्य, उत्तमकुल, एवं मनोहरगति ? और कहां भयंकर शरीरका धारक, हाथ पैर
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