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अभी इसका प्रतीकार करता हूं । तथा ब्राह्मणोंको इसप्रकार आश्वासन दे वे शीघ्र ही किसी तलावके किनारे गये । तलाव के पास जाकर उन्होंने एक नोका मगाई । और ब्राह्मणों द्वारा एक हाथी मगाकर उस नावमें हाथी खड़ा कर दिया। हाथ के वजनसे जितना नावका हिस्सा डूबगया उस हिस्से पर कुमारने एक लकीर खींचदी । एवं हाथीको नांवसे बाहिर कर उसमें उतने ही पत्थर भरवा दिये । जिससमय पत्थर और हाथीका वजन वरावर होगया तो कुमारने उनपत्थरों को भी नावसे निकलवा लिया । तथा उन पत्थरोंकी वरावर दूसरे बड़े बड़े पत्थर कर महाराज श्रेणिककी सेवामें भिजवा दिये । और नंदिग्रायके ब्राह्मणों की ओरसे यह निवेदन कर दिया कि - कृपानाथ ! आपने जो हाथीका वजन मागा था सो यह लीजिये |
- जिस समय महाराज श्रेणिकने हाथीके बजनके पत्थर देखे तो उनको बड़ा आश्चर्य हुवा । वे अपने मनमें विचारने लगे कि नंदिग्रामके ब्राह्मण अधिक बुद्धिमान हैं। उनका चातुर्य एवं पांडित्य ऊंचे दर्जेपर चढ़ा हुवा है । ये किसीरीति से जीते नहीं जासकते । तथा क्षण एक अपने मनमें ऐसा भलेप्रकार वि चार कर महाराजने फिर सेवकोंको बुलाया । और एक हाथ प्रमाणकी एक निखोल खैरकी लकड़ी उन्हें दे यह कहा कि -- जाओ इस लकड़ीको नंदिग्राम के ब्राह्मणों को दे आओ । उनसे
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