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हे वीरोंके शिरताज कुमार ! अवके महाराजने हमारे ऊपर अति कठिन आज्ञा भेजी है । हे कृपानाथ ! इसभयंकर विनसे हमारी शीघू रक्षा करो । हम ब्राह्मणोंक इसमयंकर दुःखका जल्दी निवटेरा करो।हे दीनबंधो इसमयंकर कष्टसे आपही हमारी रक्षा करसकते हैं । आपही हमारे दुःख पर्वतके नाश करने में अखंड वज्र हैं । महनीय कुमार ! लोकमें जिसप्रकार समुद्रकी गंभीरता, मेरुपर्वतका अचलपना, देवजीतकी विद्वत्ता, सुर्यका प्रतापीपना, इंद्रका स्वामीपना, चन्द्रमाकी मनोहरता, राजा रामचन्द्रकी न्यायपरायणता, कामदेवकी सुंदरता आदि बातें प्रसिद्ध हैं । उसीप्रकार आपकी सुजनता और विद्वत्ता प्र. सिद्ध है ! हे स्वामिन् । हमारे ऊपर प्रसन्न हूजिये । हमें धैर्य बधाइये । इससमय हम घोर चिंतासे व्यथित होरहे हैं । जीवननाथ ! हम सवलोगोंका जीवन आपके ही आधार है। त्रिलोकमें आपके समान हमारा कोई बंधु नहीं।। ___ ब्राह्मणोंको इसप्रकार करुणापूर्वक रोदन करतेहुवे देख कुमार अभयका चित्त करुणासे गद्गद होगया । उन्होंने गंभीरता पूर्वक ब्राह्मणोंसे कहा विप्रो ! आप क्यों इस न--. कछ वातकलिये इतना घवड़ाते हैं।मैं अभी इसका उपाय करता हूं । जबतक मैं यहां पर हूं तब तक आप किसी प्रकारसे राजा की आज्ञाका भय न करें । तथा विप्रोंको इसप्रकार समझा कर कुमार अभयने एक घड़ा मगाया। और उसमें वेल सहित
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