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तो अभी मैं उनकी बुद्धिकी फिर परीक्षा किये लेता हूं। तथा इसप्रकार क्षण एक अपने मनमें पक्का निश्चयकर महाराजने संघही कुछ शरवीर योधाओंको बुलाया। और उन्हें यह आज्ञा दी कि तुमलोग अभी नंदिग्राम जाओ । आर नंदिग्राममें जो अधिक बुद्धिमान हो शीघ्र ही उसै तलाशकर आकर कहो । महाराजकी आज्ञा पाते ही योधाआने शीघ्रही नंदिग्रामकी ओर गमन करदिया । तथा नंदिग्रामके किसी मनोहर वन वे अपनी भूखकी शांतिके लिये ठहर गये ।
वह वन अति मनोहर वन था । उसमें जगह २ अनार नारंगी संतरा जमनी कंकोलि केला लोंग आदि उत्तमोत्तम फल वृक्षोंपर फलेते थे । नीबू आदि सुगंधित फलोंकी सुमंधिसे सदा वह वन व्याप्त रहता था। उसके ऊंचे ऊंचे वृक्षों पर कोयल आदि पक्षिगण अपने मनोहर शब्दोंसे पथिकोंके मन हरण करते थे। और केतकी वृक्षोंपर भ्रमर गुंजार करते थे। इसलिये हमेशह नंदित्रामके वालक उस वनमें कोड़ार्थ आया जाया करते थे।
रोजकी तरह उसदिन भी वालक क्रीडार्थ वनमें आये । दैवयोगसे उसदिन विप्रोंके वालकोंके साथ कुमार अभय भी थे। वे सबके सव हंसते खेलते किसी जमनाके वृक्षपर चढ़ गये । और आनंदसे जामन फलोंको खाने लगे । वालकोंको इसप्रकार जमनीके पेड़ पर चढ़े राजसेवकोंने देखा । तथा वे
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