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( १७५ ) ___ भाग्यकी महिमा अनुपम है । देखो कहां तो राजा चेटक की पुत्री चेलना ? और कहां जिनधर्मरहित महाराज श्रेणिक ? कहां तो सिंधुदेशमें विशालपुरी? और राजगृह नगर कहां ? तथा कहां तो कुमार अभयद्वारा चेलनाका हरण ? और कहां महाराज श्रेणिकके साथ संयोग ? इसलिये मनुष्यको अपने भाग्यका भी अवश्य भरोसा रखना चाहिय । क्योंकि भाग्यमें पूर्णतया फल एवं अफल देने की शक्ति मौजूद है । जीवोंको शुभ भाग्यके उदयसे परमोत्तम सुख मिलते हैं । और दुर्भाग्यके उदयसे उन्हे दुःखोंका सामना करना पड़ता है। नरकादि गतियों में जाना पड़ता है। इसप्रकार भविष्यत कालमें होनेवाले तीर्थकर पद्मनाभके जीव भहाराज श्रेणिकके चरित्रमें चेलनाके साथ विवाह वर्णन करनेवाला आठवा सर्ग समाप्त हुवा।
नवम सर्ग। कृतकृत्य समन्तकोंसे रहित होनके कारण परम पूजनीक सम्यग्दशनादि तीनों रत्नत्रयसे भूषित श्री सिद्ध भगवान हमारी रक्षा करें।
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