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समय समस्तादेशाओंको बधिर करने वाले बाजे बजने लगे । बन्दीजन महाराजकी उत्तमोत्तम पद्योंमें स्तुति करने लगे । महाराज के विवाहसे नगर निवासिओंको अति प्रसन्नता हुई । चलना विवाहसे महाराजने भी अपने जन्मको धन्य समझा । विवाह के बाद महराजने बड़े गाजे बाजे के साथ रानी चेलनाको पटरानीका पद दिया । एवं राज मन्दिर में किसी उत्तम मकानमे रानी चेलनाको ठहराकर प्रीति पूर्वक महाराज उसके साथ भोग भोगने लगे । कभी तो महाराजको रानी चेलनाके मुखसे कथा कौतूहल सुन परम संतोष होने लगा । कभी महाराजको रानी चेलनाकी हँसिनी के समान गति एवं चन्द्रके समान मुख देख अति प्रसन्नता हुई । कभी महाराज चेलना के हास्योत्पन्न सुखसे सुखी होने लगे । कभी कभी महाराजको रतिजन्य सुख सुखी करने लगा । और कभी चेलनाके प्रति अंगकी सुघड़ाई महाराजको सुखी करने लगी । जिससमय राजा रानी पास में बैठते थे । उससमय इनमें और इन्द्र इन्द्राणीम कुछ भी भेद देखने में नहीं आता था । ये आनन्द पूर्वक इन्द्र इन्द्राणी के समान ही भोग विलास करते थे । रानी चेलना एवं राजा श्रेणिकके शरीर ही भिन्न थे। किंतु मन उनका एकही था । लोग ऐसा आपसी घनिष्ट प्रेम देख दोनोंको सुखकी जोड़ी कहते थे । और बरावर दोनोंके पुण्यफलकी प्रशंसा करते थे ।
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