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( १८४ ) वातमें विलंब करेंगे तो याद रखिये बौद्धधर्मकी अब खैर नहीं। अवश्य रानी बौद्ध धर्मको जड़से उड़ानेके लिये पूरा पूरा प्रयत्न कर रही है।
महाराजके ऐसे बचनोंने बौद्धगुरुओंके चित्त पर कुछ शांतिका प्रभाव डालदिया। उन्हें इस वातसे सर्वथा दिलजमई होगई कि चलो राजा तो बौद्धधर्मका भक्त है । तथा उन्होंने शीघ्र ही राजासे कहा।
राजन् ! आप खेद न करें। हम अभी रानीको जाकर समझाते हैं । हमारेलिये यह वात कौन काठिन है ? क्योंकि हम पिटकत्रय आदि अनेक ग्रथोंके भलेप्रकार ज्ञाता हैं । हमारी जिह्वा सदा अनेकशास्त्रोंका रंगस्थल बनी रहती है । और भी अनेक विद्याओंके हम पारगामी है । तथा ऐसा कहकर वे शीघ्र ही रानी चेलनाके पास आये । और इसप्रकार उपदेश देने लगे ।
चेलने ! हमने सुना है कि तू जैनधर्मको परम पवित्र धर्म समझती है । और बौद्धधर्मसे घृणा करती है । सो यह तेरा विचार सर्वथा अयोग्य है । तू यह निश्चय समझ, संसारमें जीवोंको हितकरनेवाला है तो बौद्धधर्म ही है।जैनधर्मसे कदापि जीवोंका कल्याण नहीं होसकता । देख! ये जितने दिगम्बर मतके अनुयायी साधु हैं सो पशूके समान हैं। क्योंकि पशु ज़िसप्रकार नग्न रहता है उसीप्रकार ये भी नग्न फिरते रहते
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