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हैं । आहारके न मिलनेसे पशु जैसा उपवास करता है । उसी प्रकार ये भी आहारके अभावसें उपवास करते हैं । तथा पशुके समान ये अविचारित और ज्ञान विज्ञानर हित भी हैं।
और हे रानी ! दिगम्बर साधु जैसे इसभवमें दीन दरिद्री रहते हैं परजन्ममे भी इनकी यही दशा रहती है । परजन्ममें भी इन्हें किसीप्रकारके वस्त्र भोजनोंकी प्राप्ति नहीं होती । वर्त मानमें जो दिगम्बर मुनि क्षुधा तृषा आदिसे व्याकुल दीखते हैं। परजन्ममें भी नियमसे ये ऐसे ही व्याकुल रहेंगे। इसमें कोई संदेह नहीं । तथा हे रानी क्षेत्रमें बीज वोने पर जैसा तदनुरूप फल उत्पन्न होता है । उसीप्रकार समस्त संसारी जीवोंकी दशा है । वे जैसा कर्म करते हैं नियमसे उन्हें भी वैसाही फल मिलता है। याद रक्खो यदि तुम इन भिक्षक दरिद्र दिगंम्बर मुनियोंकी सेवा शुश्रुषा करोगी तो तुम्हेंभी इन्हीं के समान परभवमें दरिद्र एवं भिक्षुक होना पड़ेगा । इसलिये अनेक प्रकारके भोग भोगनेवाले, वस्त्र आदि पदार्थोंसे सुखी, बौद्ध साधु
ओंकी ही तू भक्तिपूर्वक सेवा कर। इन्हे ही अपना हितैषी मान जिससे परभवमें भी तुझै अनेक प्रकारके भोग भोगनेमें आवे । पतिव्रते ! अव तुझै चाहिये कि तू शीघ्र ही अपने चित्तसे जैन मुनियोंकी भक्ति निकालदे । बुद्धिमान लोग कल्याणमार्गगामी होते हैं । सच्चा कल्याण कारी मार्ग भगवान बुद्ध का ही है । बौद्धगुरुओंका ऐसा उपदेश सुन रानी चलनासे न रहागया
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