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प्राणनाथ ! आप जो बौद्ध धर्मकी इतनी तारीफ कर रहे हैं सो बौद्धधर्म इतनी तारीफके लायक नहीं । उससे जीवोंका जराभी हित नहीं हो सकता । दुनियामें सर्वोत्तम धर्म जैनधर्म ही है ! जैनधर्म छोटे बड़े सवप्रकारके जीवोंपर दयाके उपदेशसे पूर्ण है । इसका वर्णन केवली भगवानके केवलज्ञानसे हुआहै। जो भव्यजीव इस परमपवित्र धर्मकी भाक्त पूर्वक आराधना करताहै । नियमसे उसे आराधनाके अनुसार फल मिलता है । तथा हे कृपानाथ ! इस जैनधर्ममें क्षुधा तृषा आदि अठारह दोषोंसे रहित, समस्तप्रकारकी परिग्रहोंसे विनियुक्तं, केवल ज्ञानी एवं जीवोंको यथार्थ उपदेशदाता तो आप्त कहागया है। और भलेप्रकार परीक्षित जीव अजीव आस्रव आदि सात तत्त्व कहे हैं। प्रमाण नय निक्षेप आदि संयुक्त इन सप्ततत्त्वोंका वर्णनभी केवली भगवानकी दिव्यध्वनिसे हुआ है । ये सातो तत्त्व कथंचित् नित्यत्व और कथंचित् अनित्यत्व इत्यादि अनेक धर्मस्वरूप हैं । यादे एकांतरीतिसे ये सर्वतत्त्व सर्वथा नित्य और अनित्य ही माने जांय तो इनकं स्वरूपका भलेप्रकार परिज्ञान नहीं होसकता।
और हे स्वामिन् ! जो साधु निग्रंथ, उत्तमक्षमा उत्तममार्दव आदि उत्तमोत्तम गुणोंके धारी, मिथ्या अंधकारको हटानेवाले, राग द्वेष मोह आदि शत्रुओंके विजयी, बाह्य अभ्यंतर दोनों प्रकारके तपसे विभूषित, भलेप्रकार परीषहोंके सहन करनेवाले | एवं नग्न दिगंबर हैं । वे इस जैनायममें गुरू माने गये हैं ।
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