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( १७८ ) सर्वथा ठीक है । ये विचारी वास्तवमे अबला ही हैं । विना समझै वूमे ही दूसरोकी वातपर चट विश्वास कर बैठती हैं।और पीछे पछिताती हैं । दीनबंधो ! जो मनुष्य प्रियवचन वोल दूसरे भोले जीवोंको ठग लेते हैं । संसारमें कैसे उनका भला होता होगा ? फुसलाकर दूसरोंको ठगनेवाले संसारमें महापातकी गिने जाते हैं। तथा ऐसा चिरकालपर्यंत विचारकर रानी चेलनाने मौन धारण करलिया । एवं एकांतस्थानमें बैठ करुणाजनक रोदन करने लगी। रानी चेलनाकी ऐसी दशा देख समस्त सखियां घवड़ागई।
चेलनाकी चिंता दूर करनेकेलिये उन्होंने अनेक उपाय किये किंतु कोईभी उपाय सफल न दीख पड़ा । यहांतक कि रानी चेलनाने सखियों के साथ वोलना भी बंद करदिया। वह मारामारा अपने जीवनकी निंदा करने लगी। जिनेंद्र भगवानकी मानसिक पूजा और उनके स्तवनमें उसने अपना मन लगाया । एवं इस दुःखसे जव जव उसे अपने माता पिताकी याद आई तो वह रोने भी लगी।
रानी चेलनाकी चिंताका समाचार महाराज श्रेणिकके कान तक पहुंचा । अति व्याकुल हो वे शीघ्र ही चेलनाके पास आये । चेलनाका मौनधारण देख उन्हें अति दुःख हुआ । रानी चेलनाके सामने वे विनयभावसे इसप्रकार कहने लगे ।
प्रिये ! आज तुम्हारी यह अचानक दशा क्योंकर होगई ? | जव जव मैं तुम्हारे मंदिरम आता था । मैं तुमको सदा प्रसन्न
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