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होरहे हैं । कृपाकर शीघ्र ही अपना चिंताका कारण मुझे कहैं । मैं भी यथासाध्य उसके दूर करनेका प्रयत्न करूंगा । कुमार अभय के ऐसे विनय भरे वचन सुन प्रथमतो महाराजने कुछ भी जवाब न दिया । वे सर्वथा चुपकी साधगये । किंतु जब उन्होंने कुमारका आग्रह विशेष देखा तब वे कहने लगे ।
प्यारे पुत्र ! चित्रकार भरतने मुझे चेलनाका यह चित्र दिया है | जिससमय से मैंने चेलनाकी तसवीर देखी है मेरा चित्त अति चंचल होगया है । इसके विना यह विशाल राज्य भी मुझे जीर्ण तृण सरीखा जान पड़ रहा है । इसके पिताकी यह कड़ी प्रतिज्ञा है कि सिवाय जैन राजा के दूसरेको कन्या न देना, इसलिये इसकी प्राप्ति मुझे अति कठिन जान पड़ती है । अब इसकन्याकी प्राप्तिके लिये प्रयत्न शीघ्र होना चाहिये । विना इसके मेरा सुखी होना कठिन है ।
पिताके ऐसे बचन सुन कुमार ने कहा । माननीय पिता ! इस जरासी बात के लिये आप इतने अधीर न हों। मैं अभी इसके लिये उपाय करता हूं । यह कौन बड़ी बात है ? तथा महाराजको इसप्रकार आश्वासन दे कुमारने शीघ्र ही पुरके बड़े बड़े जैनी सेठ बुलाये । और उनसे अपने साथ चलनेके लिये कहा । तथा कुमारकी आज्ञानुसार वे सव कुमार के साथ चलनेके लिये राजी भी होगये ।
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