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की सभा में गये । महाराज चेटककी सभा में प्रवेशकर कुमारने राजाको विनयभावसे नमस्कार किया । तथा उनके सामने मैंट रखकर, उनके साथ मधुर मधुर वचनालाप कर अपनेको जैनी प्रकट करते हुवे कुमारने प्रार्थना की।
राजाधिराज ! हमलोग जौहरी बच्चे हैं । अनेक देशों में भ्रमण करते करते यहां आपहुंचे है । हमारी इच्छा है । कि हम इस मनोहर नगर में भी कुछ दिन ठहरे । हमारे पास मकानका कोई प्रबंध नहीं । कृपाकर आप इस राजमंदिर पास हमैं किसी मकानमें ठहरनेकेलिये आज्ञा दें ।
कुमारका ऐसा अद्भुत वचनालाप एवं विनयव्यवहार देख राजा चेटक अति प्रसन्न हुवे | उन्होंने विना सोचे समझे ही कुमारको राजमन्दिर के पास रहने की आज्ञा देदी । और कुमार आदिका हदसे ज्यादह सन्मान किया ।
अब क्या था ! राजा की आज्ञा पाते ही कुमारने शीघ्र ही अपना सामान राजमन्दिर के समीप किसीमहल में मगा लिया । एवं उस मकान में मनोहर चैत्यालय बनाकर आनन्द पूर्वक बड़े समरोह से जिन भगवानकी पूजा करनी आरंभ करदी । कभी तो कुमार बड़े बड़े मनोहर स्तोत्रों में भगवान की स्तुति करने लगे । और कभी उनसेठोकें साथ जिनेंद्र भगवानकी पूजा करनी आरंभ कर दी । कभी कभी कुमारको पूजा करते ऐसा आनन्द आगया कि वे बनावटी
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