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श्रेणिक में विद्यमान है वैसा कहीं पर नहीं । क्योंकि ऐसा तो उनका प्रताप है कि जितने भर उनके शत्रु थे सब अपने मनोहर मनोहर नगरे को छोड़ बनमें रहने लगे । कोषवल भी जैसा महाराज श्रेणिकका है शायद ही किसीका होगा । हाथी घोड़े यादे आदि भी उनके समान किसी के भी नहीं । अव हम कहांतक कहैं । धर्मात्मा गुणी प्रतापी जो कुछ हैं सो महाराज श्रेणिक ही हैं | कुमार के मुखसे महाराज श्रेणिकको ऐसा उत्तम सुन ज्येष्ठा आदि समस्त कन्यायें अति प्रसन्न हुईं। अव महाराज श्रेणिकके साथ विवाह करनेकेलिये हर एक का जी ललचाने लगा । कुमार की तारीफने कन्याओं को महाराज श्रेणिकके गुणोंके परतंत्र बना दिया । अब वे चुप चाप न रह सकीं । उन्होंने शीघ्र ही विनयपूर्वक कुमारसे
।
कहा
प्रिय वणिक सरदार ! ऐसे उत्तम वरकी हमैं किस रीति से प्राप्ति हो ? न जाने हमारे भाग्य से इस जन्म में हमारा कोंन वर होगा ? श्रेष्टवर्य ? यदि किसी रीति से आप वहां हमैं ले चल तब तो मगधेश हमारे पति हो सकेत हैं । दूसरी रीति से उनका पति होना असंभव है । क्योंकि कहां तो महाराज श्रेणिक ! और हम कहां ? कृपाकर आप कोई ऐसी युक्ति सोचिये जिसमें मगधेश ही हमारे स्वामी हों । याद रखिये जवतक महाराज श्रेणिक हमें न मिलेंगे तब तक न तो हम संसार में
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