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( १६५ ) करते करते महाराज वेहोश होगये । चेलना विना समस्त जगत उन्हें अंधकारमय प्रतीत होने लगा । यहां तक कि चेलनाकी प्राप्तिका कोई उपाय न समझ उन्होंने अपना मस्तक तक भी धुनडाला । __महाराजको इसप्रकार चिंतासागरमें मन एवं दुःखित सुन कुमार अभय उनके पास आये । महाराजकी विचित्र दशा देख कुमार अभय भी चकित रह गये । कुछ समय वाद उन्होंने महाराजसे नम्रता पूर्वक निवेदन किया ।
पूज्य पिता ! मैं आपका चित्त चिंतासे अधिक व्यथित देख रहा हूं । मुझे चिंताका कारण कोई भी नजर नहीं आता। पूज्यपाद ? प्रजाकी ओरसे आपको चिंता हो नहीं सकती क्योंकि प्रजा आपके आधीन और भलेप्रकार आज्ञा पालन करने वाली है। कोष बल एवं सैन्यबल भी आपको चिंतित नहीं बनासकता क्योंकि न आपके खजाना कम है और न सेना ही । किसी शत्रुकेलिये भी चिंता करना आपको अनुचित है क्योंकि आपका कोई भी शत्रु नजर नहीं आता । आपके शत्रु भी मित्र हो रहे हैं । पूज्यवर ! आपकी स्त्रियां भी एकसे एक उत्तम हैं । पुत्र आपकी आज्ञाके भलेप्रकार पालक और दास हैं । इसलिये स्त्री पुत्रोंकी ओरसे भी आपका चित्त चिंतित नहीं हो सकता । इनसे अतिरिक्त और कोई चिंताका कारण प्रतीत नहीं होता फिर आप क्यों ऐसे दुःखित
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