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आदिकी किरण एवं मेघकी ध्वनि रहती है । वैसी ही इसके मुखमें पानकी तो ललाई है । दांतोंकी किरण चंद्र किरण हैं।
और इसकी मधुर ध्वनि मेघध्वनि मालूम पड़ती है । इसकी यह तीन रेखाओंसे शोभित, सोनेके रंगकी, मनोहर ग्रीवा है। मालूम होता है कोयलने जो कृष्णत्व धारण किया है। और पुर छोड़ वनमें वसी है । सो इस चेलनाके कंठके शब्द श्रवणसे ही ऐसा किया है। इस चेलनाके दो स्तन ऐसे जान पड़ते हैं मानो वक्षस्थल रूपी बनमें दो अति मनोहर पर्वत ही हैं । मालूम होता है इस चेलनाके नाभिरूपी तालावमें कामदेव रूपी हस्ती गोता लगाये बैठा है। नहीं तो रोमावलीरूपी भ्रमर पंक्ति कहांसे आई ? । इसके कमलके समान कोमल कर अति मनोहर दीख पड़ते हैं । कटिभाग भी इसका अधिक पतला है । ये इसके कोमल चरणों में स्थित नूपर इसके चरणोंकी विचित्र ही शोभा बना रहे हैं । नहीं मालूम होता ऐसी अतिशय शोभायुक्त यह चेलना क्या कोई किन्नरी है ? वा विद्याधरी है। किं वा रोहिणी है ? अथवा कमल निवासिनी कमला है ? वा यह इंद्राणी अथवा कोई मनोहर देवी है । अथवा इतनी अधिक रूपवती यह नाग कन्या वा काम देवकी प्रिया रति है । अथवा ऐसी तेजस्विनी यह सूर्यकी स्त्री है। तथा इसप्रकार कुछ समय अपने मनमे भलेप्रकार विचार कर, और चेलनाके रूपपर मोहित होकर, महाजने शीघ्र ही भरत चित्रकारको अपने पास बुलाया । और उससे पूछा
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