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कुष्मांडफलको रखदिया । अनेक प्रयत्न करेनपर कई दिनवाद कूष्मांड घड़ेके बरावर बढ़गया । और कुमारने घड़े सहित ज्योंका त्यों उसै महाराजकी सेवामें भिजवा दियाएवं वे आनंद से रहने लगे।
महाराजनें जेसा कुप्मांड मागा था वैसा ही उनके पास पहुंचगया।अवके कूप्मांड देखकर तो महाराजके सोचका पारावार रहा । वे वारंबार सोचने लगे । हैं ! यहबात क्या है ? क्या नंदिग्रामके ब्राह्मण ही इतने बुद्धिमान हैं ! या इनके पास कोई और ही मनुष्य बुद्धिमान रहता है ? नंदिग्रामके वाह्मणोंका तो इतना पांडित्य नहीं हो सकता। क्योंकि जबसे इनको राज्यकी
ओरसे स्थिर आजीविका मिली है।तवसे ये लोग निपट अज्ञानी होगये हैं । इनके समझमें साधारणसे साधारण तो बात आती ही नहीं फिर इनके द्वारा मेरी बातोंका जबाव देना तो बहुतही कठिन बात है । जो जो काम भने नंदिग्रामके ब्राह्मणोंके पास भेजे हैं। सबका जबाव मुझे बुद्धि पूर्वकही मिला है । इसलिये यही निश्चय होता है।नंदिग्राममें अवश्य कोई असाधारण बद्धिका धारक ब्राह्मणोंसे अन्यही मनुष्य है । जिस पांडित्यसे मेरी बातोंका जबाव दियागया है,न मालूम वह पांडित्य इंद्रदेवका है! वा चन्द्रदेवका है ! अथवा सूर्यदेव या यक्षराज का है ? नंदिग्रामके ब्राह्मणोंका तो किसीप्रकार वैसा पांडित्य नहीं हो सकता । अस्तु यदि नंदिग्रामके ब्राह्मणहा इतने बुद्धिमान हैं
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