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( १३७ )
सातवा सर्गः ज्ञानरूपी भूषणके धारक, तानोंलोकके मस्तकपर विराजमान श्री सिद्धभगवानको उनके गुणोंकी प्राप्त्यर्थ मैं मस्तक झुकाकर नमस्कार करताहूं---
अनंतर इसके महाराज श्रेणिकने रानी नंदश्रीको नंदिग्रामसे तुला महादेवीका पद प्रदान किया-उसै पटरानी वनाया। तथा कुमार अभयको युवराज पद दिया । कुमार अभयका बुद्धिवल और तेजस्वीपना देख समस्तसामंतोकी सम्मति पूर्वक महाराजने उन्हें सेनापतिका पदभी देदिया। एवं बुद्धदेवके गुणोंमें दत्तचित्त महाराज श्रेणिकने किसी बौद्ध संन्यासी को गुरु वनाया । और उसकी आज्ञानुसार वे आमंद पूर्वक चतुरायमयतत्त्वकी पूजन करने लगे । तथा अपने राज्यको निष्कंटक राज्य वना कुमार अभयके साथ लोकोत्तर सुखका अनुभव करने लगे । ____ कुमार अभय अतिशय बुद्धिमान थे । बुद्धिपूर्वक राज्य काय करनेसे उनका चातुर्य और यश समस्त संसारमें फैलगया। कुमारकी न्यायपरायणता देख समस्त प्रजा मुक्तकंठसे उनकी तारीफ करने लगी । एवं कुमारकी नीति निपुणतासे राज्यमें किसीप्रकारकी अनीति नजर न आने लगी । मगध देशकी प्रजा आनंदपूर्वक रहने लगी।
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