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तथा इसरीतिसे उनदोनों स्त्रियोंमें दिनोंदिन द्वेष वृद्धि गत होता चलागया । ___कदाचित् उनस्त्रियोंके मनमें न्याय सभामें जाकर न्याय कराने की इच्छा हुई-उन्हें इसप्रकार दरबारमें जाते देख फिर गांवके बड़े बड़े मनुष्य सेठि सुभद्रदत्तके घर आये । उन्होंने फिर उन स्त्रियोंको इसरीतिसे समझाया---देखो, । तुम बड़े घरानेकी स्त्रियां हो । तुम्हारा कुल उत्तम है । तुम्हें इस न कुछ बातके लिये दरबारमें जाना नहीं चाहिये । यदि तुम दरबारमें विना विचारे चली जाओगी । तो समस्तलोक तुम्हारी निंदा करेगा । तुम्हें निर्लज्ज कहेगा । एवं तुम्हें पीछे वहुत कुछ पछिताना पड़ेगा। किंतु उन मूखी स्त्रियोंने एक न मानी । निर्लज्ज हो वे सीधी दरबारको चलदीं। और महाराजके सामने जो कुछ उन्हें कहना था, साफ साफ कह सुनाया।
स्त्रियोंकी यह विचित्र वात सुन महाराज श्रेणिक चकित रहगये । उन्होंने वास्तवमें यह पुत्र किसका है ? इसवातके जाननेके लिये अनेक उपाय सोचे किं तु कोई उपाय सफल न जान पड़ा । उन्होंने स्त्रियोंको बहुत कुछ समझाया। लड़ाई करनेकेलिये भी रोका । किं तु उनस्त्रियोंने एक न मानी। महाराजने जब स्त्रियोंका हठ विशेष देखा । समझानेपर भी जब वे न समझी । तब उन्होंने शीश ही युवराज कुमार अभयको वुलाया
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