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स्वप्न में भी नहीं आता था कि कभी इनदोनों में झगड़ा होगा । सेठिजीके मरणके उपरांत ये उनकी बुरी तरह मिट्टी पलीत करेंगीं । पुत्रके ऊपर भी उनदोनोंका वरावर प्रेम था । पुत्रकी खास मा वसुमित्रा जिसप्रकार पुत्रपर अधिक प्रेम रखती थी । उससे भी अधिक वसुदत्ताका था। यहां तक कि समान रीतिसे पुत्रके लालन पालन करनेसे किसीको यह पता भी नहीं लगता था कि पुत्र वसुदत्ताका है ? या वसुमित्रा का ? बालकको भी कुछ पता नहीं लगता था । वह दोनोंको ही अपनी मा मानता था । किंतु ज्योंही सेठि सुभद्रदत्तका शरीरां त हुबा वसुदत्ता और वसुमित्रा में झगड़ा होना प्रारंभ होगया । कभी तो उन दोनोंकी लड़ाई धनके लिये होने लगी । और कभी पुत्रके लिये । वसुदत्ता तो यह कहती थी यह पुत्र मेरा है । और उसकी बातको काटकर वसुमित्रा यह कहती थी यह पुत्र मेरा है । गांव के सेठ साहूकारों ने भी यह बात सुनी । वे सेठि सुभद्रदत्तकी आवरूका खयाल कर उनके घर आये । सेठि साहूकारोंने बहुत कुछ उन स्त्रियों को समझाया । उन्हें सेठि सुभद्रदत्तकी प्रतिष्ठाका भी स्मरण दिलाया । किंतु उन मूर्खा स्त्रियोंके ध्यानपर एक बात न चढ़ी । धन संबंधी झगड़ा छोड़ वे पुत्रकेलिये अधिक झगड़ा करने लगीं । पुत्रका झगड़ा देख सेठि साहूकारोंकी नाक में दम आगई । वे जरा भी इस बातका फैसला न करसके । कि वह पुत्र वास्तव में किसका था ?
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