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मगधदेशमें महान संपत्तिका धारक कोई सुभद्रदत्त नामका सेठि निवास करता था । उसकी दो स्त्रियां थी । सुभद्रदत्तकी बड़ी स्त्रीका नाम वसुदत्ता था । और उसकी दूसरी स्त्री जो अतिशय रूपवती थी, व सुमित्रा थी। उनदोनोंमें वसुदत्ताके कोई संतान न थी । केवल छोटी स्त्री वसुमित्रा के एक बालक था। ___कदाचित घरमें विपुल धन रहने पर भी सेठि सुभद्रदत्त को धन कमानेकी चिंता हुई । वे शीघ्रही अपनी दोनों स्त्री और पुत्रके साथ विदेशको निकल पड़े । अनेक देशोंमें घूमते घूमते वे राजगृह नगर आये। और वहांपर सुखपूर्वक धनका उपार्जन करने लगे । और आनंदपूर्वक रहने लगे। दुर्दैवकी महिमा अपार है । संसारमें जो घोरसे घोर दुःखका सामना करना पड़ता है, इसीका कृपा है । इस निर्दयी दुर्दैव को किसी पर दया नहीं । सेठि सुभद्रदत्त आनंद पूर्वक निवास करते थे। अचानक ही उन्हें कालने आदवाया। सुभद्रदत्तको जवरन पुत्र स्त्रियोंसे म्नेह छोड़ना पड़ा । सुभद्रदत्तके मरने के बाद उनकी स्त्रियोंको अपार दुःख हुवा । किंतु किया क्या जाय ? दुर्दैवके सामने किसीकी भी तीन पांच नही चलता। ____ जब तक सेठि सुभद्रदत्त जीये तब तक तो वसुदत्ता एवं वसुमित्रा में गाढ़ प्रेम रहा । सुभद्रदत्तके सामने यह विचार
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