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में ही था । भला ऐसी विशाल बुद्धि अन्यमनुप्यमें कहांसे हो सकती है ? इत्यादि अनेक प्रकारसे कुमार अभयकी तारीफ कर महाराजने उनके साथ अधिक स्नेह जनाया । दोनों पिता पुत्र अनेक उत्तमोत्तम पुरुषोंकी कथा कहनेलगे । आपसमें वार्तालाप करते हुवे, एक स्थानमें स्थित, दोनों महानुभावोंने सूर्यचंद्रमाकी उपमाको धारण किया । महाराज श्रेणिकने सेठि इंद्रदत्तका भी अति सन्मान किया। एवं मधुरभाषी, सोच विचार कर कार्य करने वाले, कुमार और महाराज आनंद पूर्वक राजगृह नगरमें सुखानुभव करने लगे।
धर्मका महात्म्य अचिंतनीय है । क्योंकि इसकी कृपासे संसारमें जीवोंको उत्तमोत्तम बुद्धिकी प्राप्ति होती है। उत्तम संगति मिलती है । तेजवीपना, सन्मान, गंभीरता, आदि उत्तमोत्तम गुणोंकी प्राप्ति भी धर्मसे ही होती है। महाराज श्रेणिक एवं कुमार अभयने पूर्व भवमें कोई अपूर्व धर्म संचय कियाथा । इसलिये उन्हें इस जन्ममें गंभीरता, शूरता, उदारता, बुद्धिमत्ता, तेजस्वीपना, सन्मान, रूपवानपना आदि उत्तमोत्तम गुणोंकी प्राप्ति हुई । इसलिये उत्तम पुरुषोंको चहिये कि वे हर एक अवस्थामें इस परम प्रभावी धर्मका अवश्य आराधन करै। । इसप्रकार भविप्यत्कालमें होनेवाले श्रीपद्मनाभ तीर्थकरके भयं
तरके जीव महाराज श्रेणिकके चरित्र कुमार अभयका राज __ गृहमें आगमन वर्णन करनेवाला छठवा सर्ग समाप्त हुआ
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