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यह समाचार सारे नगरमें फैलगया । समस्त पुरवासी लोग कुमारके दर्शनार्थ राजमार्ग पर एकत्रित होगये । नगरकी स्त्रियां कुमारको टकटकी लगाकर देखने लगीं। कुमारके आगमन उत्सवमें सारा नगर बाजोंसे गूंजने लग गया । वंदीगण कुमारकी विरदावली वखानने लगे। और पुरवासी लोग कुमारको देख उनकी भांति भांति रीतिसे प्रशंसा करने लगे । इसप्रकार राजमार्गसे जातेहुवे, पुरवासी जनोंसे भलीभांति स्तुत, कुमार अभय राज मंदिरके पास जापहुंचे । रथसे उतर कुमारने अपने नाना इंद्रदत्तके साथ राजसभामें प्रवेश किया।और सभामें महा राजको सिंहासन पर विराजमान देख अतिविनयसे नमस्कार किया । महाराजके चरण छूवे । एवं प्रेम पूर्वक वचनालप करने लगे । कुमारके साथ नंदिग्रामके विप्रभी थे । महाराजसे उनका अपराध क्षमा कराया । उन्हें अभयदान दिला संतुष्ट किया । एवं उन्हें आनंद पूर्वक नंदिग्राममें रहनेके लिये आज्ञा देदी । कुमारके इस विनयवर्तावसे एवं लोकोत्तर चातुर्यसे महाराज श्रेणिकको अति प्रसन्नता हुई । कुमारकी विना दरीफ किये उनसे न रहागया । वे इसप्रकार कुमारकी प्रशंसा करने लगे। हे कुमार ? जैसा ऊंचे दर्जका पांडित्य आपमें मोजूद है। वैसा पांडित्य कहीं पर नहीं । महाभाग ! वकरा, वावड़ी, हाथी, काष्ठ, तेल, दूध, वालूकी रस्सी, कूष्मांड, रातदिन आदि रहित गमन, इत्यादि प्रश्नोंके जवावका सामर्थ्य आपकी बुद्धि
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