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महामुनि गुणसागरके उपदेशका मद्राके चित्तपर पूरा प्रभाव पड़ गया । कुछसमय पहले जो भद्राका चित्त कुशीलमें फसा हुआ था, वह शील वूतकी ओर लहराने लगा। मुनिराज - के वचन सुननेसे भद्रा का चित्त मारे आनंदके व्याप्त होगया । शरीर में रोमांच खड़े होगये । एवं गद्गद कंठसे उसने मुनिराज से निवेदन किया ।
प्रभो ! मेरे चित्तकी वृत्ति कुशलकी ओर झुकी हुई है यह बात आपको कैसे मालूम होगई ? किसी ने आपसे कहा भी नहीं ? कृपाकर इस दःसी पर अनुग्रहकर शीघ्र वताइये । भद्रा ऐसे वचन सुन मुनिराजने उत्तर दिया । भद्रे ? तेरे चरित्रके विषयमें मुझसे किसीने भी कुछ नहीं कहा । किंतु मेरी अत्मा के अंदर ऐसा उत्तम ज्ञान विराजमान है । जिस ज्ञान के बल से मैंने तेरे मनका अभिप्राय समझ लिया है । ज्ञानकी शक्ति अपूर्व है इसवात में तुझे जरा भी संदेह नहिं करना चाहिये |
मुनिराजके ज्ञानकी अपूर्व महिमा सुन भद्राको अति आनंद हुवा | मुनिराजकी अज्ञानुसार जिस शीलसे देवेंद्र नरेंद्र आदि उत्तमोतम पद प्राप्त होते हैं वह शलिबूत शीघ्रही उसने धारण कर लिया । एवं समस्त मुनियों में उत्तम, जीवोंको कल्याण मार्गका उपदेश देनेवाले, मुनिराज गुणसागरको नमस्कार कर वह शीघ्र ही अपने घर आगई ।
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