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भद्राके पास आया । किंतु भद्राने वसंतको भी यह जवाब दे दिया कि मैं अब शीलवत धारण कर चुकी । अपने स्वामी को छोड़कर मैं पर पुरुषकी प्रतिज्ञा ले चुकी । अब मैं कदापि तेरे साथ विषयभोग नहीं कर सकती। भद्राकी यह वात सुन जब वसंत उसे धमकी देने लगा। और उसके साथ व्याभिचारार्थ कड़ाई करने लगा। तव भद्राने साफ शब्दोंमें यह जवाब दे दिया। रे वसंत ? तु पापी नाच नराधम व्रतहीन है। मेरे चाहैं प्राण भी चले जाओ। मैं अब तेरा मुह तक न देखूगी । अब तू मेरोलिये अभिलाषा छोड़ । अपनी स्त्री संतोष कर ।
भद्राको इसप्रकार अपने व्रतमें दृढ़ देख वसंतकी कुछ भी पेश न चली । वह पागल सरीखा होगया । वह मूर्ख विचारने लगा भद्राको यह व्रत किसने देदिया ? अव मैं भद्रा को अपनी आज्ञा कारिणी कैसे बनाऊं ? क्या इस हठसे दासी वनाऊ ? या किसी मंत्रसे वनाऊ ? क्या करूं?
पापी वसंत ऐसा अधम विचार ही कर रहा था कि अचानक ही एक महाभीम नामका मंत्रवादी अयोध्यामें आ पहुंचा । सारे नगरमें मंत्रवादीका हल्ला होगया । वसंतके कान तक भी यह बात पहुंची । मंत्रवादीका आगमन सुन बसंत शीघ्र ही उसके पास आया । और स्नान भोजन आदिसे वसंतने उसकी यथेष्ट सेवा की । जब कई दिन इसीप्रकार सेवा करते वीतगये । और मंत्रवादीको जब
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