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गिरगई । कूवेमें अगूटो गिरो देख महाराजने शीघ्रहो कुमार अभयको वुलाया । और यह आज्ञादो ।
प्रिय कुमार ! अगूंठो सूखे कूवमे गिरगई है । विना किसी वांस आदि की सहायताके शीघ्र अगूंठो निकालकर लाओ।
महाराज की आज्ञा पाते ही कुमार शीघ्र ही कूवेके पास गये । कहींसे गोवर मगाकर कुमारने कूवेमें गोवर डलवा दिया । जिससमय गोबर सूखगया कूधको मुह तक पानीसे भरवादिया । ज्योंही वहता २ गोवर कूवेके मुंह तक आया गोवरमें लिपटी अगूठी भी कूवेके मुहपर आगई । तथा उस अगूंठीको लेकर कुमारने महाराजकी सेवामें ला हाजिर की । कुमारका वह विचित्र चातुर्य देख महाराज अति प्रसन्न हुवे । कुमारका अद्भुत चातुर्य देख सब लोग कुमारके चातुर्यकी प्रशंसा करने लगे । अनेकगुणोंसे शोभित कुमार अभयको चतुर जान महराज श्रेणिक भी कुमारका पूरा पूरा सन्मान करने लगे । और उनको बात बातमें कुमार अभयकी तारीफ करनी पड़ी । इसप्रकार अनेकप्रकारके नवीन २ काम करने का कौतूहली, महाराज श्रेणिक आदि उत्तमोत्तम पुरुषोंद्वारा मान्य, नीतिमार्गपर चलने वाला, समस्त दोषोंकर रहित, बृहस्पतिके समान प्रजाको शिक्षा देने वाला, अतिशय आनंद युक्त, अपने बुद्धिवलसे अति कठिन कार्यको भी तुरंत
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