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( १४१ ) और जो हकीकत उनस्त्रियोंकी थी सारी कह सुनाई।
महाराजके मुखसे स्त्रियोंका यह विचित्र विवाद सुन कुमारको भी दांततले उगली दवानी पड़ी । किंतु उपायसे अति कठिन भी काम अतिसरल होजाता है यह समझ उन्होंने उपाय करना प्रारंभ करदिया ।
कुमारने उनदोंनों स्त्रियों को अपने पास बुलाया । प्रिय वचन कह उन्हें आधिक समझाने लगे। किंतु वह पुत्र वास्तवमें किसका था, स्त्रियोंने पता न लगने दिया । किसीसमय कुमारने एक एक कर उन्हें एकांतमें भी बुलाकर पूछा। किंतु वे दोनों स्त्रियां पुत्रको अपना अपना ही बतलाती रहीं। विवाद शांतिकेलिये कमारने और भी अनेक उपाय किये । किंतु फल कुछभी नहीं निकला । अंतमें उनको अधिक गुम्सा आगई । उन्होंने वालक शीघ्र ही जमीनपर रखवालिया। और अपने हाथमें एक तलवार ले, उसे वालकके पेटपर रख कुमारने स्त्रियोंसे कहा । स्त्रियो ! आप घबड़ाये न, मैं अभी इसवालकके दो टुकड़ेकर आपका फैसला किये देता हूं। आप एक एक टुकड़ा ले अपने घर चली जाय । ___मातृस्नेहसे बढ़कर दुनियामें स्नेह नहीं । चाहै पुत्र कुपुत्र होजाय, माता कुमाता नहीं होती । पुत्र भले ही उनकेलिये किसीकामका न हो। माता कभीभी उसका अनिष्ट चिंतन नहीं करती । सदा माताका विचार यहीं रहता है । चाहे मेरा पुत्र
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