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हलसा होगया । उन्होंने फिर किसी सेवकको बुलाया । और उसै आज्ञा दी कि तुम अभी नंदिग्राम जाओ । और ब्राह्मणों से कहो कि महाराजने भोजन के योग्य दूध मगाया है । उनसे यह कह देना कि वह दूध गाय भैंस आदि चौपाओंका न हो। और न वकरी आदि दुपाओंका हो । नारियल आदि पदार्थों का भी न हो । किंतु इनसे अतिरिक्त हो । मिष्ट हो । उत्तम हो । और बहुतसा हो ।
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महाराजकी आज्ञानुसार दूत फिर नंदिग्रामको गया । महाराजने जैसा दूध लानेके लिये आज्ञा दी थी । वही आज्ञा उसने नंदिग्रामके विप्रोंके सामने जाकर कह सुनाई । और यह भी सुना दिया कि महाराज का क्रोध तुम्हारे ऊपर बढ़ता ही चला जाता है। महाराज आपलोगों पर बहुत नाराज हैं। दूध शीघ्र भेजो नहीं तो तुम्हे नंदिग्राम में नहीं रहने देंगे ।
दूतके मुख से यह संदेशा सुन ब्राह्मणों के मस्तक चक्कर खाने लगे । वे विचारने लगे कि दूध तो गाय भैंस बकरी आदिका ही होता है । इनसे अतिरिक्त किसीका दूध आज तक हमने सुनाही नहीं है । महाराजने जो किसी अन्य ही चीज का दूध मगाया है सो उन्हें क्या सूझी है ? क्या वे अब हमारा सर्वथा नाश ही करन चाहते हैं ? तथा क्षण एक ऐसा विचारकर वे अति व्याकुल हो दोड़ते दोड़ते कुमार अभय के पास गये । और महाराजका सब संदेशा कुमारके सामने कह
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