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( १२२ ) करता हूं। देखें वे कैसे बुद्धिमान हैं ? । तथा क्षण एक ऐसा अपने मनमें दृढ़ निश्चयकर महाराजने शीघ्र ही एक सेवकको वुलाया।और उससे यह कहा-तुम अभी नंदिग्राम जाओ और वहांके विप्रोंसे कहो महाराजने यह आज्ञा दी है कि नंदिग्रामके ब्राह्मण एकही मुर्गेको मेरे समाने आकर लड़ावे । यदि वे ऐसा न करें तो नंदिग्राम खाली कर चले जाय ।
महाराजकी आज्ञा पाते ही दूत फिर चलदिया। और नंदिगाममें पहुंच उसने ब्राह्मणोंसे जाकर यह कहा कि आपलोंगोकेलिये महाराजने यह आज्ञा दी है किं नंदिग्रामके ब्राह्मण राजगृह नगर आवे । और हमारे सामने एक ही मुर्गेको लड़ावे । यदि यह बात उनको नामंजूर हो तो वे शीघ्रही नंदिग्रामको खालीकर चले जाय।
दूतके वचन सुन ब्राह्मण फिर घबड़ाकर कुमार अभयके पास गयोऔर महाराजका सारा संदेशा उनके सामने निवेदन करदिया। तथा यह भी कहा महनीय कुमार ! अबके महाराज ने हमैं अपने सामने बुलाया है । अवके हमारे ऊपर अति भयंकर बिघ्न मालूम पड़ता है।
ब्राह्मणोंके ऐसे वचन सुन कुमारने उत्तर दिया आप खुशीसे राजगृह नगर जांय । आप किसी वातसे घबड़ाये न । वहां जाकर एक काम करें । मुगेको अपने सामने खड़ाकर एक दर्पण उसके सामने रखदें। जिससमय वह मुर्गा दर्पणमें अपनी
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