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( १२३ ) तस्वीर देखेगा।अपना वैरी दूसरा मुर्गा समझ वह फोरन लड़ने लग जायगा । और आपका काम सिद्ध होजायगा।
कुमारके मुखसे यह युक्ति सुनकर मारे हर्षके ब्राह्मणोंका शरीर रोमांचित होगया । एक मुर्गा लेकर वे शीघ्रही राजगृह नगरकी ओर चलदिये । राजमंदिरमें पहुंचकर उन्होंने भक्ति पूर्वक महाराजको नमस्कार किया। तथा उनके सामने उन्होंने मुर्गा छोड़दिया। और उसके आगे एक दर्पण रख दिया । जिस समय असली मुर्गेने दर्पणमें अपनी तस्वीर देखी तो उसने उसे अपना वैरी असली मुर्गा समझा । और वह चोंच मार मारकर उसके साथ अति आतुर हो युद्ध करने लगगया। __अकेले ही मुर्गेको युद्ध करते हुवे देख महाराज चकित रह गये । उन्होंने शीघही मुर्गेकी लड़ाई समाप्त करादी।तथा ब्राह्म णोंको जानेके लिये आज्ञा देदी । जिससमय ब्राह्मण चलेगये तब महाराजके मनमें फिर सोच उठा । वे विचारने लगे ब्राह्मण बड़े बुद्धिमान हैं । उनको अब किसरीतिसे दोषी बनाया जाय? कुछ समझमें नहीं आता । तथा क्षण एक ऐसा विचार कर उन्होंने फिर किसी सेवकको बुलाया।और उससे कहा कि तुम शीघ्र नंदिनाम जाओ।और वहांके ब्राह्मणोंसे कहो । महाराजने एक वालूकी रस्सी मगाई है । शीघ्र तयार कर भेजो । नहीं तो अच्छा न होगा।
महाराजकी आज्ञा पाते ही दूत नंदिग्रामकी ओर चल
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