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( १२१ ) सुनाया।तथा कुमारसे यह भी निवेदन किया कि--हे महानुभाव कुमार ! अवके महाराजकी आज्ञा बड़ी कठिन है-..-क्योंकि हो सकता है दूध तो गाय भैंस बकरी आदिका ही हो सकता है। इनसे अतिरिक्तका दूध होई नहीं सकता। यदि हो भी तो वह दूध नहीं कहा जा सकता । महाराजने अव यह दूध नही मांगा है हमलोगोंके प्राण मांगे हैं।
ब्राह्मणोंके वचन सुन कुमारने उत्तर दिया आप क्यों घबड़ाते हैं । गाय भैंस बकरी आदिसे अतिरिक्तका भी दूध होता है । मैं अभी उसे महाराज की सेवामें भिजवाता हूं । आप जरा धैर्य रक्खे । तथा ऐसा कहकर कुमारने शीघही कच्चे धान्योंकी वाले मगवाई। और उनसे गौके समान ही उत्तम दूध निकलवाकर कई घड़े भरकर तयार करायोएवं वे घड़े महा राज श्रेणिककी सेवामें राजगृह नगर भेजदिये ।।
दूधके भरे हुवे घड़ाओंको देख महाराज आश्चर्य समुद्रमें गोता लगाने लगे।नंदिग्रामके विप्रोंके बुद्धिवलकी ओर ध्यान दे उन्हे दांतो तले उंगली दवानी पड़ी। वे बारवार यह कहने लगे कि नंदिगामके ब्राह्मणोंका बुद्धिवल है कि कोई वलाय है?मैं जिस चीजको परीक्षार्थ उनके पास भेजता हूं।फौरन वे उसका जवाब मेरे पास भेज देते हैं । मालूम होता है उनका बुद्धिवल इतना बढ़ा चढ़ा है कि उन्हें सोचने तक की भी जरूरत नहीं पड़ती। अस्तु अव मैं उन्हें अपने सामने बुलाकर उनकी परीक्षा
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