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( ११४ ) कि जिसप्रकार क्षुधाका जीतना कठिन है । उसीप्रकार इस निद्राका जीतना भी अति कठिन है । क्षुधासे पीड़ित मनुष्य-- को जिसप्रकार यह विचार नहीं रहता कौंन कर्म अच्छा है कौंन वुरा है ? । संसारमें कौंन वस्तु मुझे ग्रहण करने योग्य है ? | कौंन त्यागने योग्य है। उसीप्रकार निद्रापीड़ित मनुष्यको भी
अच्छे बुरे एवं हेय उपादेयका विचार नहीं रहता । एवं जैसा क्षुधापीड़ित मनुष्य पाप पुण्यकी कुछ भी परवा नहीं करता । वैसे ही निद्रा पीड़ित मनुष्यको भी पाप पुण्यकी कुछभी परवा नहीं रहती । तथा यह निद्रा एक प्रकारका भयंकर मरण हैं । क्योंकि मरते समय कफके रुकजाने पर जैसा कंठमें घड़ घड़ शब्द होने लगजाता है।निद्राके समय भी उसी प्रकार घड़ घड़ शब्द होता है । मरणकालमें संसारी जीव जैसा खाट आदिपर सोता है उसीप्रकार निद्राकालमें भी वेहोशी से खाट आदिपर सोता है । मरणकालमें जैसा मनुष्यके अंगपर पंसीना झमक आता है वैसा निद्राके समय भी अंगपर पसीना आजाता है। एवं मरण समयमें जिसप्रकार जीव जराभी नहीं चल सकता शांत पड़जाता है । निद्राकालमें भी उसीप्रकार जीव जराभी नहीं चलता किंतु काठकी पुतलीके समान वेहोश पड़ा रहता है । इसलिये यह निद्रा अति खराव है । तथा क्षण एक ऐसा विचार कर देदीप्यमान शरीरसे शोभित, महाराज श्रेणिकने फिरसे सेवकोंको वुलाया । और उनसे कहा
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